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बालमन पर अभिभावकीय भाषा-शैली (Language Style) का प्रभाव


माता-पिता प्रायः इस बात का ध्यान नही दे पाते हैं कि उनके द्वारा प्रयोग किये गए नकारात्मक बातों या भाषा का बच्चों पर क्या और कैसा प्रभाव पड़ता हैं ?


बाल विकास का एक सामान्य हिस्सा है नखरे या शैतानी करना, क्योंकि बच्चे अपनी अभिव्यक्ति, असुविधा और अपनी मांगों को पूरा न होने या जो वे चाहते हैं उसे प्राप्त न कर पाने तक किसी भी बात को व्यक्त करने के लिए अपनी अभिव्यक्ति का यही तरीका सहज समझते हैं। ऐसी स्थिति में माता - पिता सामान्यतः गुस्सा, डांटना या कुछ माता-पिता (Parents) तो बच्चों को पीटना भी एक उपाय समझते हैं। जो कि बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास (Mental & Emotional Development) के लिए बहुत ही बुरा माना जाता है। वही कुछ माता-पिता यह स्वयं बताते हैं कि उन्हें अपने बच्चों के गुस्से, शैतानी या नखरों पर नकारात्मक / आक्रामक व्यवहार करने के बाद यह लगता है कि जिस प्रतिक्रिया की हमारे बच्चे को सबसे ज्यादा जरूरत होती हैं वह उस समय पेश करना सबसे कठिन होता है, क्योंकि उस समय वह स्वयं का संतुलन नहीं बना पाते हैं।


Neurobiological studies से पता चला है कि नकारात्मक भाषा वास्तव में अप्रभावी होती हैं। जबकि बच्चों में सकारात्मक भाषा का अधिक प्रभाव पड़ता हैं। साथ ही उनमें यह समझ विकसित होती हैं कि किस काम को करना ठीक हैं और क्या नहीं। साथ ही सकारात्मक भाषा बच्चों के व्यवहार को पुष्ट, स्पष्ट और विचारशील बनाती है।


पेरेंटिंग के कई शोध अध्ययन यह बताते है कि बच्चो के गुस्से को शांत करने का सबसे प्रभावी तरीका माता-पिता का एक सहज, शांत और सकारात्मक दृष्टिकोण ज्यादा प्रभावी साबित होता है।


हम सभी जब एक उम्र का पड़ाव पार करने के बाद माता - पिता बनते हैं तो हम यह याद ही नहीं करते हैं या ये कहे कि भूल जाते हैं कि हमारा बच्चा आज जिस उम्र में हैं हम भी कभी वह रहे हैं और यह व्यवहार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन चक्र का बस एक हिस्सा है। हमें चाहिए कि इस समय यदि संभव हो तो "नहीं" के प्रयोग से बचें साथ ही सकारात्मक भाषा विकल्पों को आजमाएं। बच्चों को भावनात्मक व्यवहार और Physical Touch के माध्यम से समझने और समझाने का प्रयास करें।


शोध अध्ययनों से पता चला है कि बच्चों को गले लगाना Diversion का एक उत्कृष्ट उपयोग है, क्योंकि गले लगने के माध्यम से proprioceptive Input इंद्रियों को नियंत्रित करने और गुस्से को कम करने में मदद करने के लिए बेहद मददगार साबित होता है।


हम यहाँ पर अभिभावकों द्वारा कुछ बहुधा प्रयोग की जाने वाली नकारात्मक भाषा का सकारात्मक विकल्प दे रहे है जिन्हे प्रयोग कर प्रभावी पेरेंटिंग की जा सकती है।


  • परेशान करना बंद करो → कुछ कहना चाहते हो ।

  • भागो मत → आराम से चलो।

  • खिलौने न फेको → अपने खिलौनों को जमीन पर आराम से रखो।

  • बीच में आना बंद करो → मैं देख सकता हूँ कि तुम मुझसे बात करना चाहते हो , एक क्षण प्रतीक्षा कर लो please.

  • उसे अकेला छोड़ दो → यहाँ आओ साथ में खेले।

  • हिट न करों → आराम से कोमल स्पर्श करो।

  • चिल्लाना बंद करो → शांत हो जाओ, गहरी सांस लो।

सामान्य तौर पर जब एक बच्चे को बार - बार “नहीं “ कहा जाता है, तो उनकी नकारात्मक व्यवहार की प्रक्रिया सक्रिय हो जाती हैं। जिससे बच्चे में गुस्से , आँसुओं के साथ प्रतिक्रिया करने या शांत रहने की सम्भावना बढ़ जाती है। लेकिन जब कोई बच्चा सकारात्मक व्यवहार या शब्दों को सुनता है तो बच्चों के मस्तिष्क का Prefrontal cortex सक्रिय होता है जो बच्चों में जिज्ञासा , समस्या - समाधान Flexibility के साथ ही नैतिकता (Morality) और उन्मुक्त विचारों वाला व्यक्ति बनने में मदद करता हैं।


"You become good parents when you start to control yourself instead of controlling your child."



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